जिस दिन से संसद भवन के उदघाटन की तारीख एवं उद्घघाटनकर्ता के रूप में माननीय प्रधानमंत्री का नाम प्रस्तावित हुआ है । उस दिन से भारतीय राजनीति के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष भागीदार सरकार को घेरने में लगे हैं। कुछ लोग संविधान के अनुच्छेद 79 का संदर्भ दें रहे हैं । कुछ लोग संवैधानिक पदों पर आसीन वरियता क्रम से जुड़ी अनुसूची के पदाक्रम को इंगित करते हुए अपना पक्ष महामहिम राष्ट्रपति के साथ रख रहे हैं।
दोनों पक्षों को बताने वाले लोग संसदीय परम्परा में लोक सभा स्पीकर के स्वविववेक को भी नजरंदाज कर दे रहे हैं। संसद भवन का निर्माण 'सरकार' की मंशा से भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए दोनों सदनों द्वारा लाये गए प्रस्ताव के परिणामस्वरूप मूर्त्त रूप लिया है।। भारतीय संवैधानिक शासन प्रणाली में "सरकार" की संकल्पना के अंतर्गत मंत्रिपरिषद को शामिल किया जाता है। प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद रूपी समूह का वास्तविक नेतृत्वकर्ता होता है । नौकरशाही को छोड़कर इसे ही "अस्थाई वास्तविक कार्यपालिका" भी कहते हैं।
यह अलग बात है कि सैद्धांतिक रूप में कार्यपालिकीय कार्य राष्ट्रपति के द्वारा एवं उनके नाम पर किया जाता है। "वास्तविक कार्यपालिका" और "सैद्धांतिक कार्यपालिका" के बीच माननीय लोकसभा अध्यक्ष ( जिसके निर्णय में लोकसभा सचिवालय भी शामिल होता है) द्वारा सरकार के नेतृत्वकर्ता द्वारा संसद भवन के उद्घाटन का लिया गया स्वविवेक रूपी निर्णय प्रक्रिया गत रुप से कहीं से भी असंगत दिखाई नहीं देता।
वैसे भी "संसद भवन" दोनों सदनों द्वारा पारित कोई संवैधानिक विधि नहीं है । जहां राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र की अवहेलना की गई हो। एक एतिहासिक सिविल निर्माण का उदघाटन देश के नागरिकों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने नागरिक सेवक के द्वारा करना कहीं से भी संविधान और कानून विरोधी नहीं हैं।
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