आज 17 जून है। अरब सागर में उत्पन्न "बिपारजांय चक्रवात" गुजरात तट पर दो दिन पहले पहुंच चुका है। गर्मी का मौसम भारतीय स्थल रुप के लिए अक्सर तेज आंधी एवं वर्षा के साथ -साथ चक्रवातों के आगमन का समय होता है। ये सभी मौसमी घटनाएं क्षेत्रीय आम जन जीवन के साथ भारतीय किसान , किसानी एवं अन्तोगत्वा अर्थव्यवस्था के लिए सुखद नहीं होतीं। जैसे- जैसे 'जलवायु परिवर्तन'(Climate Change) की परिघटना के साथ स्थल भाग पर गर्मी के रूप में तापमान में वृद्धि हो रही है। वैसे- वैसे मौसम से जुड़ी घटनाओं की तीव्रता एवं इनका प्रभाव पहले से काफी बढ़ चुका है। "बिपारजांय चक्रवात" भी मौसमी परिघटना है। जो अरब सागर से उत्पन्न होकर भारत के साथ- साथ पड़ोसी देश(पाकिस्तान) के स्थलीय भाग को प्रभावित किया है।
चक्रवात की उत्पत्ति का प्रमुख कारण सूर्य किरणों द्वारा समुद्र तल की सतह के गर्म होने के परिणामस्वरूप सतह का ताप बढने एवं वायुदाब के कम होने से कम ताप एवं अधिक दाब वाले नजदीक के दूसरे सतह के बीच उत्पन्न पवन से होता है। समुद्र से स्थल की ओर चलने वाली इस तीव्रगामी वायु प्रवाह की परिघटना को चक्रवात कहते हैं। "बिपारजांय चक्रवात" भी उसी परिघटना का परिणाम है। शुरुआत में भारतीय मौसम विज्ञान का अनुमान था कि इसकी गति 138 से 150 किमी प्रति घंटा के बीच रहेगी । वास्तविक आंकड़ों में इसकी गति कम होती जा रही है। प्रारम्भिक हवा की गतिशीलता के कारण गुजरात में काफी नुकसान देखा जा रहा है। कमजोर एवं कच्चे मकानों के लिए यह सुरक्षित नहीं है। यही कारण है कि बड़े स्तर पर इस चक्रवात के प्रवेश द्वार के इलाकों के निवासियों को एन .डी .आ .एफ. एवं स्थानिय प्रशासन के द्वारा सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया एवं चक्रवात से पहुंचाए गए नुकसान के बीच मदद भी निरंतर की जा रही है।
चक्रवात की तीव्र हवा गुजरात राज्य बाद आस पास के दूसरे मैदानी इलाकों की ओर आगे बढ़ रही है । इसके प्रभाव स्वरूप पहले से भीषण गर्मी का दंश झेल रहे भारत के वे राज्य जो कर्क रेखा एवं इसके आसपास स्थित हैं ।इस चक्रवात से कुछ राहत मिलेगा। लेकिन इस चक्रवात से जहां कुछ क्षण के लिए गर्मी से सामान्य जन को राहत मिलेगा। वहीं जून के महिने में पहले से इंतजार किए जाने वाले "जीवनदायी" मानसून की परिघटना पर नकारात्मक असर पड़ने की भी पूरी सम्भावना है। इस प्रकार की खबरें मौसम विभाग से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा दी जा रही है।लेकिन" बिपारजाय चक्रवात" से भारतीय मानसून पर कैसे प्रभाव पड़ेगा ? इसका जिक्र मीडिया खबरों में नहीं मिलता। इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि हम मानसून के उद्भव से जुड़े कारणों को जानें। साथ ही अक्सर लोगों में यह देखने एवं सुनने को मिलता है कि मानसून एक पवन या हवा है जबकि यह तथ्यगत रूप से सही नहीं है। हां, मानसून जिस माध्यम से मैदानी इलाके में पहुंचता है, वह हवा या पवन ही होता है। लेकिन मानसून हवा न होकर वास्तव में एक उर्जा है।
ऐसे में दो तथ्यों का रहस्योद्घाटन करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है। पहला मानसून के उद्भव का कारण एवं " बिपारजाय चक्रवात" द्वारा मानसून की यांत्रिकी में पहुंचायी जाने वाली बाधा। दूसरा भारतीय मानसून हवा है या उर्जा । मानसून का उद्भव मार्च के महीने से ही शुरू हो जाता है और मैदानी इलाकों में यह जून माह में पहुंचता है ।मार्च के महीने से जैसे जैसे सूर्य की किरणें विषुवत रेखा से कर्क रेखा की ओर शिफ्ट(shift) होती हैं । वह सबसे पहले विषुवत रेखा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ने के कारण उन स्थानों के सतह का ताप बढ़ जाता है।
मार्च के महीने में सूर्य के उत्तरायण के साथ सूर्य की किरणें हिन्दमहासागर एवं बंगाल की खाड़ी के इलाकों में लम्बवत पड़ती है। जिससे समुद्र के उपरी सतह का ताप बढने से समुद्र सतह के जल की गुप्त उष्मा वाष्प के रूप में उपर उठती है। और जिस समय समुद्र के सतह पर यह परिघटना हो रही होती है। उसी समय भारत के स्थल भाग पर गर्मी की शुरुआत हो रही होती है और स्थल का ताप अपेक्षाकृत कम एवं दाब ज्यादा होता है। जैसे -जैसे सूर्य की किरणें विषुवत रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ती हैं। वैसे -वैसे जून के महीने तक सूर्य की किरणें स्थल भाग को अत्यधिक तप्त कर देती हैं। जहां स्थल भाग जून में तप रहा होता है।
वहीं विषुवत रेखा के आस पास विशेषकर हिन्दमहासागर एवं बंगाल की खाड़ी के इलाके अपेक्षाकृत कम ताप की स्थिति में होते हैं एवं यहां का दाब अपेक्षाकृत कम होता है। मार्च के महीने से समुद्र तल पर जो प्रक्रिया शुरू हुई होती है वह जून तक आते आते जैसे जैसे स्थल भाग का तापमान विशेषकर कर्क रेखा से जुड़े भारत के राज्य विशेषकर राजस्थान का थार मरुस्थल 48 डिग्री सेल्सियस के ताप तक पहुंच गया होता है जिसके परिणामस्वरूप स्थल पर ताप के बढ़ने एवं दाब के कम होने के कारण समुद्र पर उत्पन्न गुप्त उष्मा से उत्पन्न वाष्प ताप एवं दाब के अंतर से उत्पन्न पवन के साथ स्थल मार्ग की ओर बढनी शुरू कर देती है। यही गुप्त उष्मा रूपी वाष्प दक्षिण भारत की विशिष्ट स्थलाकृति एवं अवस्थित के कारण दो भागों में बटकर एक अरब सागर के तट से होकर दूसरी बंगाल की खाड़ी के तट के द्वारा भारत के मैदानी इलाकों में पहुंचती है।
और बारिश होने की संघनन आधारित कुछ भौतिकी की परिघटना के नियमों से मध्य जून के बाद भारत के स्थलीय भाग पर मानसून के रूप में बारिश करती है। चूंकि मानसून की सम्पूर्ण प्रक्रिया जल की गुप्त उष्मा के कारण प्रारंभ होती है। गुप्त उष्मा को भौतिक विज्ञान में ऊर्जा कहते हैं। इस कारण मानसून एक पवन न होकर उर्जा है। मानसून के सन्दर्भ में पवन सिर्फ एक ऊर्जा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में मदद करता है। लेकिन जिस परिस्थिति के कारण अर्थात स्थल पर दाब के कम होने एवं ताप की अधिकता के कारण जो प्राकृतिक परिस्थिति जून के महीने में उत्पन्न होती है वह "बिपरजाय चक्रवात" के कारण गुजरात , राजस्थान, एवं अन्य कर्क रेखा पर स्थित राज्यों के ताप की अधिकता एवं दाब की कमी को कुछ समय के लिए असंतुलित कर देगा।जिसका परिणाम मानसून के मैदानी इलाकों में पहुंचने के मार्ग में बांधा उत्पन्न होगा। जिसके कारण मानसून की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न होगा। यह अवरोध मानसून के मैदानी इलाके में देर से पहुंचने के रुप में परिलक्षित होगा।
यदि मानसून के पहुंचने में देरी होता है तो इसका प्रभाव गर्मी के मौसम की मानसून आधारित खेती पर प्रभाव पड़ना स्वभाविक है। खेती की प्रक्रिया में देरी किसानी से जुड़ी गतिविधियों को हतोत्साहित करेगी। सम्भव है रोपाई का रकबा कम हो जाय। क्योंकि सिंचाई की अनुपलब्धता में किसान खेत की बिजाई की लागत बढ़ने से खेती के प्रति उदाशीन होगा। इसका प्रभाव अंततोगत्वा कम फसल उत्पादन के रूप कृषि अर्थव्यवस्था की उत्पादकता पर पड़ सकता है। चुनावी वर्ष में पहले से ही खाद्यान्न आपूर्ति अलग अलग कारणों से प्रभावित दिख रही है। सरकार को खाद्यान्न आपूर्ति से जुड़ी महंगाई के प्रति सचेत होना चाहिए।
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